America will crave for Indian Exported med ? भारत की दवाई पर टैरिफ लगाकर फंसा अमेरिका

तो कहते हैं कि दादागिरी दिखाना तो किसी ऐसे व्यक्ति के सामने दिखाना जो आपसे कमजोर हो। लेकिन इस बात का भी ध्यान देना कि जिसको आप दादागिरी दिखा रहे हैं उसके सामने दोबारा हाथ ना फैलाना पड़े। लेकिन अब अमेरिका ने भारत को दादागिरी दिखाकर बहुत बड़ी गलती कर दी है क्योंकि अब अमेरिका ने एक ऐसे मामले में भारत के सामने दादागिरी दिखाना शुरू कर दिया है। जिस मामले में भारत के बिना अमेरिका का काम चल ही नहीं सकता।

भारत की दवाई पर टैरिफ क्यों लगाया ?

दरअसल हम बात कर रहे हैं फार्मा यानी कि मेडिसिन इंडस्ट्री की क्योंकि आज के समय मेडिकल सेक्टर में भारत अपने 40% का एक्सपोर्ट केवल अमेरिका में करता है। जिनमें दवाइयां, मेडिकल उपकरण और कई चीजें शामिल होती हैं। फिलहाल अभी तक इन पर अमेरिका के द्वारा एक भी परसेंट इंपोर्ट ड्यूटी नहीं लगाई जाती थी। लेकिन भारत की फार्मा इंडस्ट्री को ही अमेरिका ने टेरिफ के निशाने पर ले लिया है। जहां पर अब अमेरिका के द्वारा भारत की फार्मा इंडस्ट्री पर भी लगभग 10% की इंपोर्ट ड्यूटी लगाई जाएगी। लेकिन भारत की फार्मा इंडस्ट्री पर 10% तक की टेरिफ लगाने से अमेरिका का कितना बड़ा नुकसान हो सकता है? शायद इसका अनुमान लगाना ट्रंप भूल चुके हैं। 

 

दरअसल देखा जाए तो फिलहाल में बनता हुआ माहौल इस ओर साफ-साफ इशारा कर रहा है कि डोनाल्ड ट्रंप टेरिफ लगाने की होड़ में इस तरीके से जुट चुके हैं कि शायद उन्होंने इस बात की कसम खा ली हो कि उनका भले ही कितना बड़ा नुकसान क्यों ना हो जाए लेकिन वह उन देशों का नुकसान करके ही रहेंगे जो देश उनकी मार्केट का फायदा उठाकर हर साल बिलियंस ऑफ डॉलर में कमाई करते हैं। क्योंकि भारत भी अमेरिकी मार्केट से हर साल बिलियंस ऑफ डॉलर में से कमाई करने वाला एक देश है। इसलिए इनके द्वारा भारत पर रेसिप्रोकल टेरिफ लगाने की बात हो रही है। जहां बात आगे बढ़ते-बढ़ते अब भारत की फार्मा इंडस्ट्री पर पहुंच चुकी है। असल में देखा जाए तो मेडिकल इंडस्ट्री में भारत बहुत बड़ा खिलाड़ी है और फिलहाल के समय में दुनिया में कुल 195 देश हैं। लेकिन इनमें से कुछ देशों को छोड़ दिया जाए तो भारत 185 से अधिक देशों को दवाओं और मेडिकल इक्विपमेंट का एक्सपोर्ट करता है। जहां भारत के प्रमुख दवा एक्सपोर्ट बाजार उत्तरी अमेरिका, यूरोप और अफ्रीका के देश हैं। और खासकर भारत जेरिक दवाओं का एक बहुत ही बड़ा सप्लायर है और यह दुनिया की लगभग 20% जेनेरिक दवाओं का प्रोडक्शन अकेले करता है। इसके साथ-साथ भारत दुनिया का सबसे बड़ा टीका यानी कि वैक्सीन का मैन्युफैक्चरर भी है और यह दुनिया के लगभग 60% टीकों का उत्पादन अकेले करता है और आपको मालूम हो या ना हो लेकिन भारत हर साल जिस हिसाब से मेडिसिंस की मैन्युफैक्चरिंग करता है उस हिसाब से दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा फार्मा इंडस्ट्री वाला देश है। लेकिन यहां पर इससे भी इंपॉर्टेंट बात यह है कि भारत में दवाओं की मैन्युफैक्चरिंग जो होती है वह काफी सस्ती होती है। भारत में अनेकों प्रकार की औषधियां पाई जाती हैं। इसलिए भले ही भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा दवाओं की मैन्युफैक्चरिंग करने वाला देश है लेकिन मूल्य के हिसाब से जब देखा जाए तो भारत का स्थान 14वें नंबर पर चला जाता है। लेकिन भारत की दवाओं की डिमांड जिस तरीके से बढ़ रही है उससे भारत की इंडस्ट्री और भी ज्यादा ग्रो कर रही है। फिलहाल भारत का फार्मासटिकल मार्केट लगभग 55 बिलियन अमेरिकी डॉलर का है। भारत का यह दवा उद्योग तेजी से बढ़ रहा है। जिससे यह उम्मीद की जाती है कि यह साल 2030 तक 130 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा। लेकिन जब अमेरिका के द्वारा हाल ही में भारत की फार्मा प्रोडक्ट पर टेरिफ लगाने की बात सामने आ रही है तो यह सवाल खड़ा होता है कि आखिरकार अमेरिका की इस मामले में भारत पर डिपेंडेंसी क्या है और क्या अमेरिका के द्वारा उठाया गया यह कदम सही है या नहीं तो इसके लिए आप हमारी बातों पर ध्यान दीजिए। देखिए अमेरिका की भारत पर हेल्थ केयर और मेडिकल सेक्टर में गहरी डिपेंडेंसी है। अमेरिका को कई मामलों में भारत की जरूरत पड़ती है। खासकर मेडिसिंस, डॉक्टर्स और मेडिकल रिसर्च के मामले में। इसे आसान शब्दों में कहें तो अमेरिका की फार्मेसी भारत की मेहरबानी है। क्योंकि देखा जाए तो भारत मेडिसिन का सबसे बड़ा सप्लायर है। अमेरिका में बिकने वाली करीब 40% जेनेरिक दवाइयां भारत से भेजी जाती हैं। अगर बात जेनेरिक दवाइयों की करें तो यह वह दवाइयां होती हैं जो ब्रांडेड दवाओं की तरह ही असरदार होती हैं, लेकिन सस्ती होती हैं। जैसे कि मान लो अमेरिका में किसी को सिर दर्द की दवा चाहिए, तो वह महंगी अमेरिकन कंपनी की दवा भी खरीद सकता है। लेकिन ज्यादातर लोग भारत में बनी सस्ती जेनेरिक दवा लेना पसंद करते हैं। यह ठीक वैसा ही है जैसे iPhone अमेरिका में बनता है। लेकिन लोग चाइनीस कवर लगाकर ही इस्तेमाल करते हैं। यह तो बात जेनेरिक दवाइयां की हो गई। लेकिन इसके अलावा अगर आप अमेरिका के किसी अस्पताल में जाइए और डॉक्टर का नाम डॉक्टर पटेल, डॉक्टर रेड्डी, डॉक्टर शर्मा या डॉक्टर कुमार हो तो हैरान मत होना क्योंकि अमेरिका के हॉस्पिटल भारतीय डॉक्टरों के बिना अधूरे हैं। अमेरिका में बहुत बड़ी संख्या में डॉक्टर, नर्स और मेडिकल स्टाफ भारतीय होते हैं। यहां तक कि अमेरिका में हर चौथा डॉक्टर भारत का ही होता है। इस बात को हमने पहले ही बताया था कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा वैक्सीन मैन्युफैक्चरर है। कोविड-19 के दौरान अमेरिका समेत पूरी दुनिया को भारत ने ही सबसे ज्यादा वैक्सीन सप्लाई की थी। कहने का मतलब अमेरिका की हालत वैसी थी जैसे बड़े भाई के पास पैसे हैं। लेकिन खाना छोटा भाई बनाकर खिलाता है। इसके अलावा अमेरिका में हेल्थ केयर इंडस्ट्री का एक बड़ा हिस्सा इंडियन आईटी प्रोफेशनल्स मैनेज करते हैं। मेडिकल रिसर्च, डाटा मैनेजमेंट और हेल्थ टेक्नोलॉजी में भारत का बड़ा योगदान है। कहने का मतलब यह है कि अमेरिकी अस्पतालों में मरीजों का डाटा संभालने वाला सॉफ्टवेयर काम करे या ना करे लेकिन मरीजों की मदद के लिए भारत का काल सपोर्ट पहले काम करेगा। इसीलिए रिपोर्ट में इस बात का दावा किया जा रहा है कि अगर अमेरिका भारत की दवाइयां और फार्मा प्रोडक्ट्स पर रेसिप्रोकल टेरिफ लगाता है तो यह अमेरिकन कस्टमर को काफी ज्यादा इंपैक्ट करेगा क्योंकि इसके बाद उन्हें महंगी दवाइयां खरीदना पड़ेगा क्योंकि अमेरिका में आयरलैंड से 31 मिलियन जर्मनी से 21 मिलियन स्विट्जरलैंड से करीब 18 मिलियन लेकिन भारत से करीब $1 अरब डॉलर की मेडिकल प्रोडक्ट अमेरिका में भेजे जाते हैं। यहां पर ध्यान देने वाली बात यह है कि ऐसा नहीं कि भारत से कम मात्रा में अमेरिका मेडिकल प्रोडक्ट का इंपोर्ट करता है बल्कि ऐसा इसलिए क्योंकि भारत की दवाइयां अमेरिकी मार्केट में सस्ती होती हैं। इन सब से इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि अमेरिका को सस्ती दवाइयों, डॉक्टरों, वैक्सीन और मेडिकल टेक्नोलॉजी के लिए भारत पर काफी हद तक निर्भर रहना पड़ता है। अगर भारत एक दिन अचानक अपनी मेडिकल सप्लाई बंद कर दे, तो अमेरिका में दवाइयां महंगी हो जाएंगी। अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी हो जाएगी और वैक्सीन सप्लाई ठप हो सकती है। डायग्नोस्टिक किट्स, एक्सरे मशीन,अल्ट्रासाउंड स्कैनर, ब्लड प्रेशर मॉनिटर और स्टेथोस्कोप जैसी चीजें शामिल हैं। भारत 2023 में 2.8 अरब डॉलर मूल्य के मेडिकल उपकरणों का निर्यात कर चुका है। यानी कि आप इससे अंदाजा लगा सकते हैं कि अमेरिका को दवाई के मामले में कितनी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। बाकी आप लोग अमेरिका की इन हरकतों पर क्या कहना चाहेंगे? अपनी राय कमेंट में जरूर बताएं |

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